CBSE Test Paper 01

हजारी प्रसाद द्विवेदी


  1. शिरीष के फूल पाठ में किस सच्चाई को उजागर करने के लिए तुलसी को उद्धृत किया गया है?

  2. गांधीजी और शिरीष की समानता प्रकट कीजिए।

  3. शिरीष की पुरानी फलियों के माध्यम से लेखक ने किस कटु यथार्थ का संकेत किया है? टिप्पणी कीजिए।

  4. सर्वग्रासी काल की मार से बचते हुए वही दीर्घजीवी हो सकता है, जिसने अपने व्यवहार में जड़ता छोड़कर नित बदल रही स्थितियों में निरंतर अपनी गतिशीलता बनाए रखी है। पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

  5. हजारीप्रसाद द्विवेदी के द्वारा नेताओं और कुछ पुराने व्यक्तियों की अधिकार सीमा पर किए गए व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।

  6. कालिदास ने शिरीष की कोमलता और द्विवेदी जी ने उसकी कठोरता के विषय में क्या कहा है? शिरीष के फूल पाठ के आधार पर बताइए।

  7. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- (2×3=6)
    मैं सोचता हूँ कि पुराने की यह अधिकार-लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती? जरा और मृत्यु, ये दोनों ही जगत के अतिपरिचित और अतिप्रामाणिक सत्य हैं। तुलसीदास ने अफ़सोस के साथ इनकी सच्चाई पर मुहर लगाई थी- "धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना!"
    मैं शिरीष के फूलों को देखकर कहता हूँ कि क्यों नही फलते ही समझ लेते बाबा कि झड़ना निश्चित है। सुनता कौन है? महाकाल देवता सपासप कोड़े चला रहे हैं, जीर्ण और दुर्बल झड़ रहे हैं, जिनमे प्राण-कण थोड़ा भी ऊर्ध्वमुखी है, वे टिक जाते हैं।
    दुरंत प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरंतर चल रहा है। मूर्ख समझते है कि जहाँ बने हैं, वहीँ देर तक बने रहे तो काल-देवता की आँख बचा जाएँगे। भोले हैं वे। हिलते-डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किए रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि मरे!

    1. शिरीष की किस विशेषता पर लेखक को यह सब कहना पड़ा?
    2. तुलसीदास के कथन का क्या आशय है? उसमें किस सच्चाई को उजागर किया गया है?
    3. "महाकाल देवता सपासप कोड़े चला रहे हैं" से लेखक का क्या आशय है?

CBSE Test Paper 01
हजारी प्रसाद द्विवेदी


Solution

  1. तुलसीदास जी ने जीवन के बारे में कहा था कि जो फलता है, वह झड़ता भी है-"धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना" कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक जीव की मृत्यु सुनिश्चित है। इससे किसी भी स्थिति में बचा नहीं जा सकता है।

  2. जिस प्रकार शिरीष चिलचिलाती धूप, लू, वर्षा और आँधी में भी अविचल खड़ा रहता है, अनासक्त रहकर अपने वातावरण से रस खींचकर सरस, कोमल बना रहता है, उसी प्रकार गांधीजी भी देश में मची मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, और खून-खच्चर के बीच स्थिर और अविचलित रह सके थे।

  3. परिवर्तन संसार का नियम है। मनुष्य को समयानुसार स्वयं को परिवर्तित करते रहना चाहिए। मृत्यु तो अटल है, जो लोग समय के साथ चलते हैं, नए को स्वीकार करते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ते है, वे कुछ समय के लिए काल के कोड़ों से बचे रहते है। इसके विपरीत, जो एक ही स्थान पर जमे रहते हैं, उनको दूसरों के द्वारा धक्का दे दिया जाता है। यह स्थिति राजनीति, साहित्य तथा संस्थानों में पूर्ण रूप से दिखाई पड़ती है। पुराने लोग नए जमाने के इस प्रचलन को नहीं पहचान पाते तथा एक ही स्थान पर जमे रहते हैं। समाज भी उन्हें पुराना, जीर्ण-शीर्ण समझकर अस्वीकार कर देता है। वृद्धावस्था और मृत्यु अतिपरिचित और अतिप्रामाणिक सत्य है, जिसे सभी को स्वीकार करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए।

  4. मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं को बदलती परिस्थितियों के अनुसार ढाल ले। जो मनुष्य सुख-दुःख, आशा-निराशा आदि स्थितियों में अनासक्त भाव से रहकर अपना जीवनयापन करता है वही प्रतिकूल परिस्थतियों को भी अपने अनुकूल बना सकता है वह शिरीष की तरह ही सर्वग्रासी काल से बचकर दीर्घजीवी होता है। शिरीष का वृक्ष और गाँधी जी दोनों अपनी विपरीत परिस्थिति के सामने जड़ होकर नष्ट नहीं हुए, बल्कि उन्हीं भीषण और विपरीत परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाकर उन्होंनें न केवल अपने जीवन में सरसता उत्पन्न की बल्कि दूसरों के सामने दृढ़ इच्छाशक्ति का उदाहरण भी प्रस्तुत किया।

  5. लेखक को शिरीष के पुराने फलों को देखकर उन नेताओं की याद आती है, जो बदले हुए समय को नहीं पहचानते हैं तथा जब तक नए फल और पत्ते मिलकर उन्हें धक्का नहीं मारते, तब तक वे अपने स्थान पर जमे ही रहते हैं। नेताओं को स्वयं ही ज़माने का रुख पहचानते हुए अपने स्थान को रिक्त कर देना चाहिए, पर वे ऐसा करते नहीं।

  6. कालिदास और संस्कृत साहित्य ने शिरीष को बहुत कोमल माना है। कालिदास का कथन है- 'शिरीष पुष्प केवल भौंरों के पदों का कोमल दबाव सहन कर सकता है, पक्षियों का बिलकुल नहीं।' लेकिन इससे हज़ारी प्रसाद द्विवेदी सहमत नहीं हैं। उनका विचार है कि इसे कोमल मानना भूल है। इसके फल इतने मज़बूत होते हैं कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नए फल-पत्ते मिलकर, धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते, तब तक वे डटे रहते हैं। वसंत के आगमन पर जब सारी वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है, तब भी शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं।

    1. लेखक को शिरीष के वृक्ष पर पुराने मज़बूत फलोंं को देखकर यह सब कहना पड़ा। वस्तुतः शिरीष के फल इतने मजबूत होते हैं कि वे अपने स्थान को आसानी से नहीं छोड़ते, नए फूलों के निकल आने के बाद भी वे अपने स्थान पर डटे रहते हैं।
    2. तुलसीदास के कथन का आशय यह है कि इस पृथ्वी पर यह प्रामाणिक है कि जो फलता है, वह झड़ जाता है, बिखर जाता है, टूट जाता है तथा जो जलता है, उसे बुझना ही पड़ता है। तुलसीदास ने अपने इस कथन के माध्यम से इस शाश्वत सच्चाई को उजागर किया है कि जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है, वह नष्ट होता ही है।
    3. "महाकाल देवता सपासप कोड़े चला रहे हैं"- पंक्ति से लेखक का आशय यह है कि प्रत्येक जीव समय के साथ-साथ मृत्यु की ओर, बढ़ रहा है। महाकाल अर्थात् मृत्यु उसे अपनी आगोश में लेने के लिए तेजी से बढ़ा चला आ रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि समय व्यतीत होने के साथ-साथ प्रत्येक जीव काल का ग्रास बनने की ओर निरंतर बढ़ रहा है।