CBSE Test Paper 01

जूझ


  1. जूझ के कथानायक का मन पाठशाला जाने के लिए क्यों तड़पता था? उसे खेती का काम अच्छा क्यों नहीं लगता था? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

  2. जूझ कहानी का नायक किन परिस्थितियों में अपनी पढ़ाई जारी रख पाता है? अगर उसकी जगह आप होते तो उन विषम परिस्थितियों में किस प्रकार अपने सपने को जीवित रख पाते?

  3. जूझ कहानी प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच संघर्ष की कहानी है। सिद्ध कीजिए।

  4. जूझ के लेखक के मन में यह विश्वास कब और कैसे जन्मा कि वह भी कविता की रचना कर सकता है?

  5. वसंत पाटील कौन है? लेखक आनंद यादव ने उससे दोस्ती क्यों व कैसे की?

  6. जूझ कहानी में चित्रित ग्रामीण जीवन का संक्षिप्त वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

  7. दत्ता जी राव की सहायता के बिना जूझ कहानी का मैं पात्र वह सब नहीं पा सकता था जो उसे मिला। -टिप्पणी कीजिए।

  8. जूझ कहानी आधुनिक किशोर-किशोरियों को किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा दे सकती है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

CBSE Test Paper 01
जूझ


Solution

  1. जूझ के कथानायक का मन पाठशाला जाने के लिए इसलिए तड़पता था क्योंकि उसे शिक्षा से अत्यंत गहरा लगाव था। शिक्षा से ही व्यक्ति अपनी उन्नति के बारे में सोच सकता है तथा वह समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सकता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि शिक्षा व्यक्ति की उन्नति का द्वार खोलती है।
    उसे खेती का काम इसलिए अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उसे यह विश्वास था कि जन्म भर खेत में काम करते रहने पर भी हाथ कुछ नहीं लगेगा। वह सोचता था कि "जो बाबा के समय था, वह दादा के समय नहीं रहा। यह खेती हमें गड्ढे में धकेल रही है। पढ़ जाऊँगा तो नौकरी लग जाएगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे, विठोबा आण्णा की तरह कुछ धंधा कारोबार किया जा सकेगा।" 
    उपर्युक्त बातों के कारण लेखक को खेती का काम अच्छा नहीं लगता था और उसका मन पाठशाला जाने के लिए तड़पता था।
  2. जूझ कहानी के नायक के सामने संकट था। उसके पिता के लिए खेती ही सब कुछ था। शिक्षा को वह निरर्थक मानते थे। उसने लेखक का स्कूल जाना भी बंद करवा दिया था क्योंकि वे खेती व पशु चराने का काम उससे करवाना चाहते थे। लेखक व उसकी माँ पढ़ाई के बारे में उससे बात करते डरते थे। उन्होंने दत्ताराव के जरिए अपनी बात मनवाई। पिता ने खेती के काम करने की शर्त पर स्कूल भेजने की मंजूरी दी। स्कूल में लेखक अपनी उम्र के हिसाब से छोटी कक्षा में था। शरारती बच्चे उसका मजाक उड़ाते थे। पैसे की कमी के कारण वर्दी आदि की भी दिक्कत थी। लेखक ने अपने परिश्रम से अपना सम्मान अर्जित किया और कविता व गणित में अव्वल स्थान प्राप्त किया। अगर मैं लेखक की जगह होता तो मैं भी प्रयास करके अपने पिता को अपनी बात मनवाने के लिए सहमत करवाता और मेहनत, संघर्ष व लगन से अपना लक्ष्य हासिल करता।
  3. यह कहानी एक किशोर की स्वयं के जीवन के यथार्थ एवं मार्मिक गाथा है। इस कहानी में एक किशोर को पिता के तानाशाही एवं नासमझ रवैये के कारण खेती में लगना पड़ा था। उसका मन पाठशाला के लिए तड़पता था। वह परिस्थितियों से जूझता है। यह एक किशोर को देखे और भोगे गए ग्राम्य जीवन के खुरदरे यथार्थ और परिवेश को विश्वसनीय ढंग से प्रतिबिंबित भी करता है। कथानायक शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई स्तर पर जूझता है। पहले वह घर में संघर्ष करता है, इसके बाद स्कूल में भी उसे पढ़ाई के लिए जूझना पड़ता है। आर्थिक संकट से भी उसे परेशानी उठानी पड़ती है। इन सब संघर्षों के बावजूद वह अपनी पढ़ाई जारी रखता है। वह कविता पाठ करने लगा। गणित में भी वह अव्वल हो गया। इस कारण सभी उसे आनंद कहने लगे थे। लेखक ने आत्मकथा में अपने जीवन संघर्ष को ही व्यक्त किया है। यह कहानी प्रतिकूल परिस्थितियों में संघर्ष की कहानी है। कथानायक को अंत में अपने संघर्ष में सफलता मिलती है।
  4. लेखक मराठी पढ़ाने वाले अध्यापक न.वा.सौंदगलेकर की कला व कविता सुनाने की शैली से बहुत प्रभावित हुआ। सौंदगलेकर मास्टर स्वयं कवि थे तथा वे अनेक मराठी कवियों के चरित्र और संस्मरण सुनाते, इसलिए उसे महसूस हुआ कि कविता लिखने वाले भी हमारे जैसे मनुष्य ही होते हैं। कवियों के बारे में सुनकर तथा कविता सुनाने की कला-ध्वनि, गति, चाल आदि सीखने के बाद उसे लगा कि वह अपने आस-पास, अपने गाँव, अपने खेतों से जुड़े कई दृश्यों पर कविता बना सकता है। वह भैंस चराते-चराते फसलों या जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। वह हर समय कागज़ व पेंसिल रखने लगा। वह कविता को मास्टर को दिखाता। इस प्रकार उसके मन में कविता-रचना के प्रति रुचि उत्पन्न हुई।
  5. वसंत पाटील दुबला-पतला, परंतु होशियार लड़का था। वह स्वभाव से शांत था तथा हर समय पढ़ने में लगा रहता था। वह घर से पूरी तैयारी करके आता था तथा उसके सभी सवाल ठीक होते थे। वह दूसरों के सवालों की जाँच करता था। उसे कक्षा का मॉनीटर बना दिया गया था। वह हमेशा पहली बेंच पर मास्टर के पास बैठता था। कक्षा के सभी छात्र उसका सम्मान करते थे। लेखक भी उसकी देखा देखी मेहनत करने लगा। उसने बस्ता व्यवस्थित किया, किताबों पर अखबारी कागज का कवर चढ़ाया तथा हर समय पढ़ने लगा। उसके सवाल भी ठीक निकलने लगे। वह भी वसंत पाटिल की तरह लड़कों के सवाल जाँचने लगा। इस तरह दोनों दोस्त बन गए तथा एक-दूसरे की सहायता से कक्षा के अनेक काम करने लगे।
  6. ‘जूझ’ कहानी में ग्रामीण जीवन का यथार्थपरक चित्रण किया गया है। गाँव में किसान, जमींदार आदि कई वर्ग हैं। लेखक स्वयं कृषिकार्य करता है। उसके पिता बाजार में गुड़ के ऊँचे भाव पाने के लिए गन्ने की पेराई जल्दी करा देते हैं। गाँव में पूरा परिवार कृषि कार्य में लगा रहता है, चाहे बच्चे हों, महिलाएँ हों या वृद्ध। कुछ बड़े जमींदार भी होते हैं जिनका गाँव पर काफी प्रभाव होता है। गाँव में कृषक बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर कम ध्यान देते हैं जबकि अपनी अय्याशी के चक्कर में बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं। ग्रामीण स्कूलों में बच्चों के पास कपड़े भी पर्याप्त नहीं होते। बच्चों को घर व स्कूल का काम करना पड़ता था जैसे- ढोर चराना, खेतों में पानी लगाना आदि।  
  7. यह बात बिल्कुल सही है कि दत्ता जी राव की सहायता के बिना लेखक पढ़ नहीं सकता था। यदि दत्ता जी राव लेखक के पिता को नहीं समझाते तो लेखक को कभी पाठशाला नसीब नहीं होती। वह अर्धशिक्षित ही रह जाता तथा गीत, कविता, उपन्यास न लिख पाता। उच्च शिक्षा के अभाव में उसे अपने खेतों में मजदूर की तरह आजीवन काम करना पड़ता। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसे जमींदार के खेतों में काम भी करना पड़ता या मजदूरी भी करनी पड़ती। वस्तुतः उसका जीवन ही अंधकारमय हो जाता।
  8. जूझ कहानी में किशोर युवक के संघर्ष को व्यक्त किया गया है। यह संघर्ष आधुनिक युवाओं को प्रेरणा दे सकता है जो निम्नलिखित हैं-
    • दूरदर्शिता- कहानी का नायक ‘आनंदा’ दूरदर्शी है। वह किशोर अवस्था में ही पढ़ाई के महत्त्व को समझ गया था। उसे पता था कि खेती में ज्यादा आमदनी नहीं है। वह नौकरी या व्यवसाय का महत्त्व समझ गया था।
    • मेहनती- आनंदा बेहद मेहनती था। वह खेत में कठोर मेहनत करता था तथा पढ़ाई में भी वह अव्वल था। यह प्रेरणा नए युवा ले सकते हैं।
    • संघर्षशीलता- आधुनिक किशोर-किशोरियाँ कम संघर्ष से सफलता अधिक चाहते हैं। आनंदा ने पढ़ाई, खेती, स्कूल, समाज हर जगह प्रतिकूल परिस्थितियाँ होते हुए भी सफलता पाई। उसकी यह संघर्ष गाथा आज के युवा वर्ग के लिए सीख है कि साधन संपन्न होना आवश्यक नहीं बल्कि संघर्ष के द्वारा सफलता प्राप्त हो सकती है।
    • अभ्यास- आनंदा पढ़ाई में ध्यान देता था। कविता का अभ्यास वह भैंस की पीठ पर, पत्थर पर, खेतों में हर जगह करता था। गणित में भी वह बेहद होशियार था। नए विद्यार्थी अभ्यास करने की प्रेरणा ले सकते हैं।